प्रस्तावना - श्रीमद भगवद गीता

हो सकता है इस ब्रम्हांड में कहीं किसी बुक शेल्फ पर कोई संपूर्ण पुस्तक रखी हो | मैं अज्ञात देवताओं से यही प्रार्थना करता हूँ की काश किसी इकलौते आदमी ने हजारों साल पहले उस पुस्तक को पढ लिया हो | यदि उसे पढने का सम्मान उससे मिलने वाला ज्ञान और आनंद मुझे न मिले तो किसी और को मिल सके | भले ही मेरा स्थान नरक में हो पर उस स्वर्ग क अस्तित्व बना रहे| मेरे भाग्य में दुःख यातना और विनाश आये पर सिर्फ एक ही व्यक्ति कम से कम एक ही बार उस पुस्तक के औचित्य को जान ले |

|| हरि तत् सत ||